कि जो न मेरे पास दिल होता
तो क्या मैं ज़्यादा सुखी होता ||
जब न कुछ मुझको अच्छा लगता
और न कुछ मुझको बुरा लगता,
तब न कोई मुझको डर होता
कुछ खोने का या पाने का ||
जब न कोई मुझको आस होती
और न कोई मुझको तलाश होती
एक ऐसा पल ढूंडने की
जिस मे दिल को खुशी होती ||
और फिर न कोई जुस्तजू होती
किसी दूसरे से आगे निकलने की
ना कोई ईर्षा न कोई दवे्श
ना कोई बैर न कोई भेद ||
जब न कोई मुझको अच्छा लगता
और न कोई
तब कोई कुछ कहता कोई कुछ सुनता
मुझको ना कुछ फरक पङता |
ना मुझे कोई शिकवा होती
ना कोई मुझको गिला होती
बस मैं खुद ही मे खुद होता
और अपने मे मैं खुश होता ||
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